रहगुज़र - सर्वजीत. Rahguzar - Hindi Poem by Sarvajeet D. Chandra
रहगुज़र - सर्वजीत कुछ रास्ते ऐसे होते हैं कि इन्सान को मुसाफ़िर बना देते हैं अगर भूल जाओ, हस्ती को अपनी मंज़िल होगी कहीं, इसका गुमान देते हैं बैठे बैठे सोचते हैं अक्सर कभी बिछड़ा शहर, आँगन कैसा होगा जिस घर को छोड़ दिया पीछे उस घर में राह कोई देखता होगा रास्तों में उलझा रहा अपना सफ़र घर कभी ना फिर कोई नसीब हुआ अकेले दौड़ती रही उम्मीद, तमन्ना ना हमसफ़र, ना कोई अज़ीज़ हुआ क्या यह है सफ़र की इंतिहा कि राह भी थक कर सो गयी है हम रुके नहीं चलते ही रहे मंजिले सराब में खो सी गयी हैं अपनी मर्ज़ी का अपना सफ़र था ना जाने किस दर्द का हवाला था ना ठहरे हुए से तालाब की ठंड थी ना बहते पानी का जोश गवारा था मुसाफ़िर हो जैसा, सफ़र वैसा होता है रहमत हो ख़ुदा की ग़र, मौसम हसीं होता है रहगुज़र खोज लेती ही है खुद-ब-खुद जिस किरदार का राही उसे ढूँढता है Connect with Unpen on Social Media One Link : https://campsite.bio/tounpen Podcast Page https://podcasters.spotify.com/pod/show/unpen Instagram : https://www.instagram.com/2unpen/ Facebook Page: https://www.facebook.com/IndianPoetry/ Twitter : https://twitter.com/2unpen Contact Sarvajeet on sarvajeetchandra@gmail.com